भगवद्गीता अध्याय 1 — अर्जुन विषाद योग | कुरुक्षेत्र का शंखनाद और आत्मा का जागरण
कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि…
जहाँ धर्म और अधर्म आमने-सामने खड़े थे।
जहाँ मानवता को मिला ईश्वर का अमर उपदेश — श्रीमद्भगवद्गीता।
युद्ध आरंभ होने से ठीक पहले, जब दोनों सेनाएँ गर्जना कर रही थीं, शंखों की ध्वनि आकाश और पृथ्वी को हिला रही थी — वहीं एक दिव्य क्षण जन्म ले रहा था। यही क्षण है अध्याय 1 — अर्जुन विषाद योग, जहाँ से आध्यात्मिक ज्ञान की महान यात्रा शुरू होती है।
✨ धृतराष्ट्र का प्रश्न
नेत्रों से अंधे राजा धृतराष्ट्र पूछते हैं अपने सारथी संजय से—
“धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः,
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥”
हे संजय, बताओ — धर्मभूमि पर युद्ध के लिए एकत्र हुए
मेरे पुत्र और पांडवों ने क्या किया?
⚔️ दुर्योधन की व्याकुलता
संजय बताता है —
जब पांडवों की सेना युद्ध के लिए व्यवस्थित हुई, दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर बोला—
“पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्…”
वह अपने योद्धाओं की शक्ति गिनाता है, पर उसके भीतर संशय और भय बढ़ रहा है।
🔱 भीष्म पितामह का गर्जन
उसी समय भीष्म पितामह सिंहगर्जना जैसे शंख बजाते हैं—
“सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्”
उनके शंखनाद से दिशाएँ काँप उठीं।
युद्ध का आरंभ संकेत देने वाली ध्वनि गूँज उठी।
फिर कर्ण, द्रोण, अश्वत्थामा, भीम, नकुल, सहदेव —
सब ओर युद्धघोष छा गया।
🐎 श्रीकृष्ण और अर्जुन का दिव्य शंख
श्वेत अश्वों से युक्त रथ पर बैठे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने अपने दिव्य शंख बजाए—
“ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते… माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः”
माधव का शंख — पाञ्चजन्य
अर्जुन का — देवदत्त
ध्वनि ऐसी कि ब्रह्मांड थर्रा उठा।
😞 अर्जुन का विषाद — आत्मा की पुकार
युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन ने कहा—
“सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत”
कृष्ण ने रथ दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा किया।
अर्जुन ने अपने ही गुरु, पितामह, रिश्तेदारों और मित्रों को सामने खड़े देखा।
“दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण… सीदन्ति मम गात्राणि”
उसके हाथ काँप उठे, मन टूट गया—
धनुष गांडीव हाथ से गिर पड़ा।
“न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च”
वह बोला —
“हे माधव, मुझे विजय नहीं चाहिए, ना राज्य, ना सुख…
जब इसकी कीमत अपने ही प्राण हों।”
और अंत में —
“न योत्स्ये” — “मैं युद्ध नहीं करूँगा”
अर्जुन बैठ गया, निराश, मोह में डूबा हुआ।
वहीं से प्रारंभ होती है परम ज्ञान की यात्रा —
क्योंकि जब मन टूटता है, तब ही ज्ञान का प्रकाश जन्म लेता है।
🕉️ अध्याय 1 का सार
- अर्जुन का विषाद कमजोरी नहीं, परिवर्तन का द्वार है।
- यह अध्याय हमें सिखाता है —
भावों के तूफ़ान में भी सत्य की खोज करनी चाहिए। - यहीं से कृष्ण उपदेश शुरू करते हैं — कर्म, ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर।
🎧 इस अध्याय को सुनें — भावपूर्ण वाचन
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🌟 निष्कर्ष
अर्जुन विषाद योग हमें बताता है —
जब जीवन में भ्रम, दुख और संघर्ष आता है,
वह अंत नहीं — ज्ञान की शुरुआत है।
हर युग में, हर हृदय में,
गीता की वाणी फिर से गूँजती है…
क्योंकि यह केवल अर्जुन की कथा नहीं —
यह हम सबकी आत्मा की कथा है।
🙏 जय श्रीकृष्ण | हरि ओम् तत्सत
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